डेबिट और क्रेडिट का नियम (Rule of Debit and Credit)

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लेखांकन में लेन-देन को दोहरी प्रविष्टि प्रणाली के आधार पर दर्ज और प्रबंधित किया जाता है जिसके कारण प्रत्येक लेनदेन को डेबिट और क्रेडिट में दर्ज किया जाता है लेकिन किसे डेबिट करना है और किसे क्रेडिट करना है यह डेबिट और क्रेडिट के नियमों से पता चलता है। डेबिट और क्रेडिट के नियमों को जाने बिना, लेखांकन में लेन-देन को दर्ज नहीं किया जा सकता है।

डेबिट और क्रेडिट के नियमों को दो दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है, पहला और सबसे पुराना पारंपरिक दृष्टिकोण है और दूसरा और सबसे नया आधुनिक दृष्टिकोण है। दोनों दृष्टिकोणों में, लेन-देन को उनकी प्रकृति के आधार पर विभाजित किया जाता है ताकि उन पर संबंधित नियम लागू किए जा सकें। उदाहरण के लिए, पारंपरिक दृष्टिकोण में, लेन-देन को व्यक्तिगत खाते, वास्तविक खाते और नाममात्र खाते में विभाजित किया जाता है और आधुनिक दृष्टिकोण में, लेन-देन को परिसंपत्ति खाते, पूंजी खाते, व्यय खाते, देयता खाते और राजस्व खाते में विभाजित किया जाता है।

डेबिट और क्रेडिट का नियम (Rule of Debit and Credit)

डेबिट और क्रेडिट का नियम (Rule of Debit and Credit)

डेबिट और क्रेडिट के नियम को समझने के दो दृष्टिकोण हैं:

डेबिट और क्रेडिट का नियम (Rule of Debit and Credit) – पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach)
– आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)

पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach)

पारंपरिक दृष्टिकोण के अनुसार डेबिट और क्रेडिट के नियम निम्नलिखित हैं:

पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach) – व्यक्तिगत खाता (Personal Account)
– वास्तविक खाता (Real Account)
– नाममात्र खाता (Nominal Account)

1. व्यक्तिगत खाता (Personal Account):

व्यक्ति से संबंधित सभी लेन-देन पर व्यक्तिगत खाता का नियम लागू होता है। यदि व्यक्ति से संबंधित लेन-देन की बात करें तो इनमें वे लेन-देन शामिल हैं जिनमें कोई व्यक्ति शामिल होता है और यह व्यक्ति जीवित या कृत्रिम हो सकता है जैसे कोई इंसान, क्लब, सोसायटी, कंपनी, आदि और यदि खातों की बात करें तो देनदार, लेनदार, बैंक और मालिक, आदि से संबंधित सभी खाते इसके अंतर्गत आते हैं। बेहतर समझ के लिए व्यक्तिगत खाता को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

  1. प्राकृतिक व्यक्तिगत खाता (Natural Personal Account): इसमें मनुष्यों से संबंधित लेनदेन/खाते शामिल हैं।
  2. कृत्रिम व्यक्तिगत खाता (Artificial Personal Account): इसमें कृत्रिम रूप से निर्मित व्यक्तियों जैसे कम्पनियां, फर्म, क्लब, सोसायटी, अस्पताल आदि से संबंधित लेनदेन/खाते शामिल हैं।
  3. प्रतिनिधि व्यक्तिगत खाता (Representative Personal Account): इसमें प्राकृतिक व्यक्तिगत खाता और कृत्रिम व्यक्तिगत खाता का प्रतिनिधित्व करने वाले लेनदेन/खाते शामिल हैं, जैसे बकाया व्यय, पूर्वदत्त व्यय, आदि।
व्यक्तिगत खाता का नियम (Rules of Personal Account) – जो लेता है उसे डेबिट करें (Debit – The Receiver)
– जो देता है उसे क्रेडिट करें (Credit – The Giver)

स्पष्टीकरण (Explanation): व्यक्तिगत खाता के अंतर्गत आने वाले लेन-देन को दर्ज करते समय, जो प्राप्त करता है उसे डेबिट किया जाता है और जो देता है उसे क्रेडिट किया जाता है। उदाहरण के लिए, उधार खरीद के मामले में, खरीदार विक्रेता को क्रेडिट करता है क्योंकि विक्रेता ने खरीदार को उत्पाद दिया और विक्रेता खरीदार को डेबिट करता है क्योंकि खरीदार ने उत्पाद प्राप्त किया।


2. वास्तविक खाता (Real Account):

वास्तविक खाता के अंतर्गत आने वाले सभी लेन-देन पर वास्तविक खाता का नियम लागू होता है। वास्तविक खाता की बात करें तो इसमें नकदी, बैंक, मशीनरी, बिल्डिंग, जमीन, फर्नीचर, सॉफ्टवेयर, गुडविल, पेटेंट, ट्रेडमार्क आदि जैसी संपत्तियों से जुड़े सभी लेन-देन शामिल होते हैं। बेहतर समझ के लिए इसे दो भागों में वर्गीकृत किया गया है।

  1. मूर्त वास्तविक खाता (Tangible Real Account): इसमें मूर्त संपत्तियों से संबंधित लेन-देन शामिल हैं। मूर्त संपत्तियों से तात्पर्य उन संपत्तियों से है जिन्हें देखा और छुआ जा सकता है जैसे कि नकदी, मशीनरी, भवन, भूमि, फर्नीचर, आदि।
  2. अमूर्त वास्तविक खाता (Intangible Real Account): इसमें अमूर्त संपत्तियों से संबंधित लेनदेन शामिल हैं। अमूर्त संपत्तियों से तात्पर्य उन संपत्तियों से है जिन्हें देखा और छुआ नहीं जा सकता है जैसे पेटेंट, कॉपीराइट, सॉफ्टवेयर, सद्भावना, आदि।
वास्तविक खाता का नियम (Rules of Real Account) – जो आता है उसे डेबिट करें (Debit – What Comes In)
– जो जाता है उसे क्रेडिट करें (Credit – What Goes Out)

स्पष्टीकरण (Explanation): वास्तविक खाता से संबंधित लेन-देन को दर्ज करते समय, जो आता है उसे डेबिट किया जाता है और जो जाता है उसे क्रेडिट किया जाता है। उदाहरण के लिए, नकद खरीद के मामले में, खरीदार नकदी को क्रेडिट करता है क्योंकि खरीदार से नकद गया है और विक्रेता नकदी को डेबिट करता है क्योंकि विक्रेता के पास नकद आया है।


3. नाममात्र खाता (Nominal Account):

नाममात्र खाता से संबंधित सभी लेन-देन पर नाममात्र खाता का नियम लागू होता है। नाममात्र खाता की बात करें तो इसमें आय, व्यय, लाभ, हानि आदि से संबंधित सभी लेन-देन शामिल होते हैं जैसे बिक्री, खरीद, कार्यालय व्यय, फैक्ट्री व्यय, कर, कमीशन, ब्याज, आदि। सरल भाषा में कहें तो व्यक्तिगत खाता और वास्तविक खाता से संबंधित लेन-देन को छोड़कर सभी लेन-देन इसमें शामिल होते हैं।

ध्यान दें: बकाया और पूर्वदत्त आय और व्यय प्रतिनिधि व्यक्तिगत खाता के अंतर्गत आते हैं, इसलिए इसमें नाममात्र खाता का नियम लागू नहीं होता है।

नाममात्र खाता का नियम (Rules of Nominal Account)– सभी खर्चों/हानि को डेबिट करें (Debit – All Expenses/Losses)
– सभी आय/लाभ को क्रेडिट करें (Credit – All Income/Gains)

स्पष्टीकरण (Explanation): नाममात्र खाता से संबंधित लेन-देन दर्ज करते समय, व्यय, हानि आदि से संबंधित लेन-देन डेबिट किए जाते हैं और आय, लाभ आदि से संबंधित लेन-देन क्रेडिट किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, उत्पाद खरीद के मामले में, खरीदार खरीद को डेबिट करता है क्योंकि खरीद एक व्यय है और विक्रेता बिक्री को क्रेडिट करता है क्योंकि बिक्री एक आय है।


आधुनिक दृष्टिकोण (Modern approach)

आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार डेबिट और क्रेडिट के नियम निम्नलिखित हैं:

आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach) – संपत्ति खाता (Asset Account)
– पूंजी खाता (Capital Account)
– व्यय खाता (Expense Account)
– देनदारी खाता (Liability Account)
– राजस्व खाता (Revenue Account)

1. संपत्ति खाता (Asset Account):

संपत्ति से संबंधित सभी लेन-देन पर संपत्ति खाता का नियम लागू होते हैं। संपत्ति का मतलब किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली किसी ऐसी चीज़ से है जिसका मौद्रिक मूल्य होता है और जिसका इस्तेमाल संपत्ति को खरीदने, धन बढ़ाने, देनदारियों का भुगतान करने, आदि के लिए किया जा सकता है। नकदी, बैंक, इमारतें, ज़मीन, मशीनरी, सद्भावना, पेटेंट, ट्रेडमार्क, फ़र्नीचर आदि संपत्ति के उदाहरण हैं।

संपत्ति खाता का नियम (Rules of Assets Account) – बढ़ाने लिए डेबिट करें (Debit – To Increase)
– घटने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Decrease)

2. पूंजी खाता (Capital Account):

व्यवसाय के मालिक से संबंधित सभी लेन-देन पर पूंजी खाता का नियम लागू होता है। पूंजी से तात्पर्य व्यवसाय में मालिक द्वारा किए गए निवेश से है। पूंजी खाता का नियम न केवल स्वामी के निवेश पर लागू होता है, बल्कि स्वामी द्वारा की गई निकासी पर भी लागू होता है।

पूंजी खाता का नियम (Rules of Capital Account) – बढ़ाने लिए क्रेडिट करें (Debit – To Decrease)
– घटने के लिए डेबिट करें (Credit – To Increase)

3. व्यय खाता (Expense Account):

व्यय और हानि से संबंधित लेन-देन पर व्यय खाता का नियम लागू होता है। व्यय किसी चीज़ को खरीदने की लागत को संदर्भित करता है और व्यवसाय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खरीद, माल ढुलाई व्यय, बीमा, भुगतान किया गया कमीशन, कार्यालय व्यय, वेतन, मजदूरी, आदि व्यय के उदाहरण हैं।

व्यय खाता का नियम (Rules of Expense Account) – बढ़ाने लिए डेबिट करें (Debit – To Increase)
– घटने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Decrease)

4. देनदारी खाता (Liability Account):

देनदारियों से संबंधित सभी लेन-देन पर देनदारी खाता का नियम लागू होते हैं। देनदारी वित्तीय जिम्मेदारी को संदर्भित करती है और यह जिम्मेदारी तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति किसी को बदले में कुछ देने के लिए उत्तरदायी होता है। लेनदार, ऋण, बकाया व्यय, आदि देनदारी के कुछ उदाहरण हैं। व्यवसाय में देनदारी को बैलेंस शीट में दिखाया जाता है।

देनदारी खाता का नियम (Rules of Liability Account) – बढ़ाने लिए क्रेडिट करें (Debit – To Decrease)
– घटने के लिए डेबिट करें (Credit – To Increase)

5. राजस्व खाता (Revenue Account):

आय, लाभ आदि से संबंधित सभी लेन-देन पर राजस्व खाता का नियम लागू होता है। राजस्व से तात्पर्य व्यवसाय में उत्पन्न आय से है और यह व्यवसाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि लाभ कमाने में राजस्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बिक्री, प्राप्त ब्याज, प्राप्त रॉयल्टी, प्राप्त कमीशन आदि राजस्व के कुछ उदाहरण हैं।

राजस्व खाता का नियम (Rule of Revenue Account) – बढ़ाने लिए क्रेडिट करें (Debit – To Decrease)
– घटने के लिए डेबिट करें (Credit – To Increase)

पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच अंतर (Difference Between Traditional and Modern Approach)

पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional approach)आधुनिक दृष्टिकोण (Modern approach)
1.– व्यक्तिगत खाता (Personal Account) – पूंजी खाता (Capital Account)
– देनदारी खाता (Liability Account)
2. – वास्तविक खाता (Real Account)
– व्यक्तिगत खाता (Personal Account)
– संपत्ति खाता (Asset Account)
3. – नाममात्र खाता (Nominal Account) – व्यय खाता (Expense Account)
– राजस्व खाता (Revenue Account)

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QNA/FAQ

Q1. डेबिट और क्रेडिट के नियम को समझने के कितने दृष्टिकोण हैं?

Ans: डेबिट और क्रेडिट के नियम को समझने के दो दृष्टिकोण हैं:

– पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach)
– आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)

Q2. पारंपरिक दृष्टिकोण में कितने नियम हैं?

Ans: पारंपरिक दृष्टिकोण के तीन नियम हैं:

1. व्यक्तिगत खाता का नियम (Rules of Personal Account)
2. वास्तविक खाता का नियम (Rules of Real Account)
3. नाममात्र खाता का नियम (Rules of Nominal Account)

Q3. आधुनिक दृष्टिकोण में कितने नियम हैं?

Ans: आधुनिक दृष्टिकोण के पाँच नियम हैं:

1. संपत्ति खाता का नियम (Rules of Assets Account)
2. पूंजी खाता का नियम (Rules of Capital Account)
3. व्यय खाता का नियम (Rules of Expense Account)
4. देनदारी खाता का नियम (Rules of Liability Account)
5. राजस्व खाता का नियम (Rule of Revenue Account)

Q4. व्यक्तिगत खाता का नियम लिखिए।

Ans: व्यक्तिगत खाता का नियम इस प्रकार है:

– जो लेता है उसे डेबिट करें (Debit – The Receiver)
– जो देता है उसे क्रेडिट करें (Credit – The Giver)

Q5. वास्तविक खाता का नियम लिखिए।

Ans: वास्तविक खाता का नियम इस प्रकार है:

– जो आता है उसे डेबिट करें (Debit – What Comes In)
– जो जाता है उसे क्रेडिट करें (Credit – What Goes Out)

Q6. नाममात्र खाता का नियम लिखिए।

Ans: नाममात्र खाता का नियम इस प्रकार है:

– सभी खर्चों/हानि को डेबिट करें (Debit – All Expenses/Losses)
– सभी आय/लाभ को क्रेडिट करें (Credit – All Income/Gains)

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