रिट (Writ): भारतीय संविधान के तहत प्रावधान

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हम अक्सर सुनते हैं कि किसी कोर्ट ने कोई काम करवाने के लिए रिट जारी की, या किसी काम को रुकवाने के लिए, या किसी ने किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में रिट याचिका दायर की, तो ये रिट या रिट याचिका क्या है, इसका इस्तेमाल कब होता है, कानून में इसके प्रावधान कहां दिए गए हैं,आदि?, आइए इस लेख में इसे समझते हैं।

रिट एक संवैधानिक उपाय (remedy) है जो कानून के उचित कामकाज को सुनिश्चित करके राज्य (देश) की कानूनी प्रणाली की रक्षा करता है। यदि कोई प्राधिकारी (authority) अपना कर्तव्य नहीं निभाता है, तो उपयुक्त न्यायालय को उसके खिलाफ रिट जारी करने का अधिकार है।

रिट (Writ): भारतीय संविधान के तहत प्रावधान

रिट क्या है? (What is Writ?)

रिट एक औपचारिक लिखित आदेश के रूप में एक संवैधानिक उपाय है जिसे उचित न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है। भारत में, रिट उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी की जा सकती है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने का अधिकार देता है, और भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार देता है। भारतीय संविधान के तहत रिट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus), परमादेश (mandamus), प्रतिषेध (prohibition), अधिकार-पृच्छा (quo warranto), उत्प्रेषण (certiorari) आदि, शामिल हैं, और इन्हें रिट के प्रकार भी कहा जाता है।

रिट (Writ)
उच्च न्यायालय (High Court)सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)
अनुच्छेद 226, भारतीय संविधान काअनुच्छेद 32, भारतीय संविधान का
बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto), उत्प्रेषण (Certiorari), आदि।बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto), उत्प्रेषण (Certiorari), आदि।

रिट याचिका क्या है? (What is Writ Petition?)

रिट याचिका कानून के तहत दिए गए प्रावधानों के अनुसार किसी प्राधिकारी के खिलाफ रिट जारी करने के लिए उपयुक्त अदालत से किए जाने वाला एक औपचारिक अनुरोध है। भारत में रिट याचिका उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226 के तहत) और सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32 के तहत) द्वारा स्वीकार की जाती है। यदि अदालत रिट याचिका से संतुष्ट हो जाती है तो अदालत उस के खिलाफ रिट जारी कर सकती है जिसके खिलाफ याचिका दायर की गई है। ध्यान दें: रिट के लिए, रिट याचिका अनिवार्य है, सिवाय इसके कि कानून के तहत प्रावधान दिया गया हो।


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 32 में रिट का कानूनी प्रावधान दिया गया है, जो इस प्रकार है:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226(1) उच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार देता है।

  • “अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक उच्च न्यायालय को, उन सभी क्षेत्रों में, जिनके संबंध में वह अधिकारिता का प्रयोग करता है, किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को, जिसमें समुचित मामलों में कोई सरकार भी शामिल है, उन क्षेत्रों के भीतर भाग III द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकार के प्रवर्तन के लिए, बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण या इनमें से किसी भी प्रकार के रिट सहित निर्देश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार होगा।”

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32(2) भारत के सर्वोच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार देता है।

  • “इस भाग द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकार के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश या आदेश या रिट जारी करने की शक्ति होगी, जिसमें बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण की प्रकृति के रिट शामिल हैं, जो भी उचित हो।”

रिट के प्रकार (Types of Writs)

भारत के संविधान के तहत दिए गए रिट के प्रकार निम्नलिखित हैं:

बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)– “शरीर के लिए” (“to have the body”)गैरकानूनी हिरासत से बचाने के लिए।
परमादेश (Mandamus)– “हम/हमें आज्ञा” (“we command”)कर्तव्य को पूरा करने के लिए।
प्रतिषेध (Prohibition)– “वर्जित करना” (“to forbid”)निचली/ट्रायल अदालत को उसकी शक्तियों से परे कार्य करने से रोकने के लिए।
अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto)– “किस प्राधिकरण या वारंट से” (“by what authority or warrant”)सरकारी कार्यालय को अनधिकृत कब्जे से बचाने के लिए।
उत्प्रेषण (Certiorari)– “प्रमाणित करने या सूचित करने के लिए” (“to certify or inform”)निचली/ट्रायल अदालत द्वारा लिए गए निर्णयों को सुधारने के लिए।

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

बंदी प्रत्यक्षीकरण एक प्रकार का रिट है जिसे तब जारी किया जाता है जब किसी को अवैध रूप से हिरासत में लिया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो, यह उस व्यक्ति को रिहा करने के लिए जारी किया जाता है जिसे अवैध रूप से या गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है।

इस रिट के माध्यम से, न्यायालय उचित निकाय को उस व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देता है जिसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है, यदि न्यायालय पाता है कि व्यक्ति को अवैध रूप से या गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है तो न्यायालय उसे रिहा करने का निर्देश जारी करता है।

2. परमादेश (Mandamus)

परमादेश तब जारी किया जाता है जब एक सार्वजनिक प्राधिकरण प्रावधानों के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है, और यह रिट केवल सार्वजनिक/सरकारी प्राधिकरण के खिलाफ जारी किया जाता है।

इस रिट के माध्यम से, अदालत उस प्राधिकरण को अपना कर्तव्य निभाने के लिए निर्देशित करती है जिसके खिलाफ रिट याचिका को दायर किया जाता है, यदि वे कानून के अनुसार अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं।

3. प्रतिषेध (Prohibition)

प्रतिषेध उच्चतर न्यायालय अर्थात उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाने और निर्दिष्ट कार्य न करने के लिए जारी की जाती है और यह परमादेश के विपरीत है क्योंकि परमादेश में अदालत कार्य करने का निर्देश देती है और प्रतिषेध में अदालत कार्य न करने का निर्देश देती है, लेकिन दोनों ही मामलों में अदालत कानून के तहत दिए गए प्रावधान के अनुसार कार्य करने का निर्देश देती है। प्रतिषेध तब जारी किया जाता है जब निचली अदालत में मुकदमा लंबित हो ताकि अदालत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाए।

4. अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto)

अधिकार-पृच्छा एक प्रकार का रिट है जो एक उपयुक्त अदालत द्वारा जारी किया गया है, यह साबित करने के लिए कि एक व्यक्ति किस अधिकार में एक सरकारी कार्यालय रखता है। सरल शब्दों में कहें तो, यह रिट सरकारी कार्यालय को अनधिकृत कब्जे से बचाने में मदद करता है।

इस रिट के माध्यम से, अदालत उस व्यक्ति को बुलाता है जिसके खिलाफ रिट याचिका दायर की जाती है, यह जानने के लिए कि वह किस अधिकार से सरकार के कार्यालय को रखा है, अगर अदालत ने पाया कि व्यक्ति ने कार्यालय को अवैध रूप से रखा है, तो उसे इससे हटाया जा सकता है।

5. उत्प्रेषण (Certiorari)

उत्प्रेषण तब जारी की जाती है जब निचली अदालत अपनी शक्तियों से परे जाकर या ग़लत काम करती है, उदाहरण के लिए, अपनी शक्तियों से परे आदेश पारित करना, उचित कानून लागू न करना, कानून की त्रुटि, आदि। यह रिट तब लागू होती है जब निचली अदालत ने पहले ही कार्रवाई कर दी हो और उसके कार्य में सुधार की आवश्यकता हो। यह उच्चतर न्यायालय यानी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत को जारी किया जाता है।

इस रिट के माध्यम से उच्चतर न्यायालय निचली अदालत से पूछता है कि उसने किस अधिकार के तहत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया है, अगर अदालत को लगता है कि निचली अदालत ने बिना किसी अधिकार के अपने अधिकार क्षेत्र से बहार जाकर काम किया है, तो उच्च न्यायालय उचित कार्रवाई करता है।


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QNA/FAQ

Q1. रिट क्या है?

Ans: रिट एक औपचारिक लिखित आदेश के रूप में एक संवैधानिक उपाय है जिसे उचित न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।

Q2. रिट याचिका क्या है?

Ans: रिट याचिका कानून के तहत दिए गए प्रावधानों के अनुसार किसी प्राधिकारी के खिलाफ रिट जारी करने के लिए उपयुक्त अदालत से किए जाने वाला एक औपचारिक अनुरोध है।

Q3. बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट कब जारी की जाती है?

Ans: जब किसी को अवैध रूप से हिरासत में लिया जाता है।

Q4. परमादेश रिट कब जारी की जाती है?

Ans: जब कोई सरकारी अधिकारी अपना कर्तव्य पूरा नहीं करता है।

Q5. उत्प्रेषण रिट कब जारी की जाती है?

Ans: जब निचली अदालत अपनी शक्तियों का अतिक्रमण करके ऐसा कुछ करती है जो कानून द्वारा निषिद्ध है।

Q6. प्रतिषेध रिट कब जारी किया जाता है?

Ans: जब निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने का प्रयास करती है।

Q7. अधिकार-पृच्छा रिट कब जारी की जाती है?

Ans: जब कोई व्यक्ति अवैध रूप से सरकारी पद पर आसीन होता है।

Q8. रिट के प्रकार लिखिए।

Ans: रिट के प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
2. परमादेश (Mandamus)
3. प्रतिषेध (Prohibition)
4. अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto)
5. उत्प्रेषण (Certiorari), आदि।


स्रोत

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