क्रेडिट शब्द के विभिन्न अर्थ हैं, अभी हम लेनदेन के प्रबंधन के लिए उपयोग किए जाने वाले डेबिट और क्रेडिट के बारे में बात कर रहे हैं।
लेखांकन में कई सारे सिद्धांत, अवधारणाएँ, परंपराएँ, नियम, प्रारूप, आदि हैं जो लेखांकन कार्य को बेहतर तरीके से करने में मदद करते हैं और उनमें से एक है क्रेडिट जिसका उपयोग डेबिट के साथ किया जाता है क्योंकि दोनों का अलग-अलग उपयोग नहीं किया जा सकता है। जब भी क्रेडिट का उपयोग किया जाएगा तो डेबिट का भी उपयोग किया जाएगा और जब भी डेबिट का उपयोग किया जाएगा तो क्रेडिट का भी उपयोग किया जाएगा। सरल भाषा में कहें तो ये एक सिक्के के दो पहलू हैं, यानी एक लेन-देन के दो पहलू, एक डेबिट और दूसरा क्रेडिट।
विस्तार से बात करें तो, लेखांकन में लेन-देन को दोहरे पहलू सिद्धांत के अनुसार पुस्तकों में दर्ज किया जाता है जिसका मतलब है कि हर लेन-देन के दो पहलू होते हैं, एक डेबिट और दूसरा क्रेडिट। उदाहरण के लिए, अगर देनदार से नकद भुगतान प्राप्त होता है, तो देनदार के खाता को क्रेडिट किया जाता है, और नकद खाता को डेबिट किया जाता है। इसी तरह, अगर लेनदार को नकद भुगतान किया जाता है, तो लेनदार के खाता को डेबिट किया जाएगा, और नकद खाता को क्रेडिट किया जाएगा। उपरोक्त उदाहरण से पता चलता है कि हर लेन-देन के दो पहलू होते हैं: एक डेबिट और दूसरा क्रेडिट।
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क्रेडिट क्या है? (What is Credit?)
क्रेडिट लेखांकन में एक अवधारणा है जो किसी लेनदेन के एक पहलू (पक्ष) को दर्शाता है और यह हमेशा डेबिट के बराबर होता है क्योंकि दोनों लेखांकन समीकरण (डेबिट = क्रेडिट / संपत्ति = पूंजी + देयता) पर आधारित हैं। क्रेडिट को दर्शाने के लिए Cr. शब्द का प्रयोग भी किया जाता है और यह क्रेडिट का संक्षिप्त रूप है। पुस्तक में लेन-देन दर्ज करते समय जिस खाता को क्रेडिट किया जाता है उसे दाईं ओर दर्ज किया जाता है। लेन-देन का कौन सा पक्ष क्रेडिट होगा यह लेखांकन नियमों द्वारा निर्धारित किया जाता है जिन्हें डेबिट और क्रेडिट के नियम भी कहा जाता है।
अगर हम इसे लेखांकन नियमों के हिसाब से देखें तो व्यक्तिगत खाता में देने वाला क्रेडिट पक्ष में होगा, वास्तविक खाता में जो भी जाएगा वो क्रेडिट पक्ष में होगा और नाममात्र खाता में सारी आय और लाभ क्रेडिट पक्ष में होगा। अगर हम इसे श्रेणी के हिसाब से देखें तो पूंजी, देयता, राजस्व, आदि क्रेडिट पक्ष में आएंगे और खर्च, संपत्ति, आदि डेबिट पक्ष में आएंगे।
पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach)
व्यक्तिगत खाता (Personal Account) | – जो लेता है उसे डेबिट करें (Debit – The Receiver) – जो देता है उसे क्रेडिट करें (Credit – The Giver) |
वास्तविक खाता (Real Account) | – जो आता है उसे डेबिट करें (Debit – What Comes In) – जो जाता है उसे क्रेडिट करें (Credit – What Goes Out) |
नाममात्र खाता (Nominal Account) | – सभी खर्चों/हानि को डेबिट करें (Debit – All Expenses/Losses) – सभी आय/लाभ को क्रेडिट करें (Credit – All Income/Gains) |
आधुनिक दृष्टिकोण (Modern approach)
संपत्ति (Asset) | – बढ़ाने लिए डेबिट करें (Debit – To Increase) – घटने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Decrease) |
पूंजी (Capital) | – घटने के लिए डेबिट करें (Debit – To Decrease) – बढ़ाने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Increase) |
व्यय (Expense) | – बढ़ाने लिए डेबिट करें (Debit – To Increase) – घटने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Decrease) |
देनदारी (Liability) | – घटने के लिए डेबिट करें (Debit – To Decrease) – बढ़ाने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Increase) |
राजस्व (Revenue) | – घटने के लिए डेबिट करें (Debit – To Decrease) – बढ़ाने के लिए क्रेडिट करें (Credit – To Increase) |
क्रेडिट की विशेषताएं (Features of Credit)
क्रेडिट की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. अवधारणा (Concept):
क्रेडिट लेखांकन में एक अवधारणा है जो लेखांकन सिद्धांतों के अनुसार पुस्तकों में लेनदेन के प्रबंधन/अभिलेखन में मदद करता है। यह लेनदेन के एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि दोहरे पहलू लेखांकन सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक लेनदेन के दो पक्ष होते हैं जिसमें एक पक्ष कुछ बढ़ाता है और दूसरा पक्ष कुछ घटाता है या इसके विपरीत।
2. डेबिट के बराबर (Equal to Debit):
क्रेडिट हमेशा डेबिट के बराबर होता है, क्योंकि ये दोनों ही दोहरे पहलू लेखांकन सिद्धांत के महत्वपूर्ण अंग हैं और इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक लेनदेन के दो पक्ष होते हैं और दोनों पक्षों का मूल्य समान होता है। यदि इस सिद्धांत का प्रयोग लेनदेन के प्रबंधन के लिए किया जाता है, तो अन्य लेखांकन सिद्धांतों के क्षेत्राधिकार में डेबिट तथा क्रेडिट की अवधारणा का पालन करना अनिवार्य है।
3. नियम लागू (Rules Apply):
इसमें डेबिट और क्रेडिट के नियम लागू होते हैं क्योंकि कौन सा खाता क्रेडिट होगा यह नियमों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, अगर खरीद नगद पर की जाती है, तो खरीद खाता डेबिट और नकद खाता क्रेडिट किया जाता है। इसी तरह, अगर बिक्री नकद में की जाती है, तो नकद खाता डेबिट और बिक्री खाता क्रेडिट किया जाता है।
4. दाईं ओर दर्ज (Recorded on the Right Side):
दोहरे पहलू लेखांकन सिद्धांत के कारण, प्रत्येक लेनदेन के दो पक्ष होते हैं, और इसलिए प्रत्येक खाता को दो भागों में विभाजित किया जाता है, एक डेबिट भाग जिसे बायाँ पक्ष भी कहा जाता है, और दूसरा क्रेडिट भाग जिसे दायाँ पक्ष भी कहा जाता है, इसलिए प्रत्येक क्रेडिट लेनदेन को खाता के दाईं ओर दर्ज किया जाता है और प्रत्येक डेबिट लेनदेन जो खाता के बाईं ओर दर्ज किया जाता है।
5. वृद्धि और कमी (Increase and Decrease):
क्रेडिट से पूंजी, राजस्व, देयता आदि, का शेष बढ़ता है और संपत्ति, व्यय आदि का शेष घटता है और यह लेखांकन के नियम यानी डेबिट और क्रेडिट के नियम के कारण होता है जिसे लेखांकन का स्वर्णिम नियम (Golden Rules of Accounting) भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, नकद खरीद के मामले में संपत्ति (नकद) घटती है क्योंकि संपत्ति को क्रेडिट किया जाता है, इसी तरह नकद बिक्री के मामले में राजस्व (बिक्री) बढ़ता है क्योंकि राजस्व को क्रेडिट किया जाता है।
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QNA/FAQ
Q1. क्रेडिट क्या है?
Ans: क्रेडिट लेखांकन में एक अवधारणा है जो किसी लेनदेन के एक पहलू (पक्ष) को दर्शाता है।
Q2. क्रेडिट का संक्षिप्त रूप लिखिए।
Ans: Cr.
Q3. क्या क्रेडिट डेबिट के बराबर होता है?
Ans: हां, क्रेडिट डेबिट के बराबर होता है क्योंकि दोनों दोहरे पहलू सिद्धांत पर आधारित हैं।
Q4. बहीखाता के किस पक्ष में क्रेडिट लेनदेन को दर्ज किया जाता है।
Ans: क्रेडिट लेनदेन को बहीखाता के दाईं ओर दर्ज किया जाता है।
Q5. क्रेडिट की विशेषताएं लिखिए।
Ans: क्रेडिट की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. यह लेखांकन में एक अवधारणा है।
2. यह लेनदेन के एक पहलू (पक्ष) का प्रतिनिधित्व करता है।
3. यह हमेशा डेबिट के बराबर होता है।
4. इसे Cr. के रूप में संक्षिप्त किया जाता है।
5. यह लेखांकन समीकरण का एक हिस्सा है।
6. यह दोहरे पहलू लेखांकन सिद्धांत पर आधारित है।
7. इसे खाता के दाईं ओर दर्ज किया जाता है।
8. इसका उपयोग डेबिट के बिना नहीं किया जाता है।
9. इसमें डेबिट और क्रेडिट का नियम लागू होता है।
10. यह पूंजी, देयता, राजस्व, आदि को बढ़ाता है।
11. यह संपत्ति, व्यय, आदि को घटाता है।