किसी भी संगठन में लेखांकन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि इसकी सहायता से संगठन में होने वाले लेन-देन का प्रबंधन किया जाता है लेकिन लेन-देन का प्रबंधन करते समय कुछ नियमों का पालन किया जाता है ताकि लेन-देन को व्यवस्थित तरीके से प्रबंधित किया जा सके और ये नियम लेखांकन अवधारणाओं पर आधारित होते हैं। लेखांकन अवधारणाओं का पालन करना अनिवार्य नहीं है लेकिन यह लेखांकन मानकों का पालन करने में मदद करता है। ध्यान दें: कानून इसे प्रभावित कर सकता है।
लेखांकन अवधारणा को लेखांकन मान्यताओं के रूप में भी जाना जाता है और इसमें व्यावसायिक इकाई अवधारणा, धन माप अवधारणा, दोहरे पहलू अवधारणा, मिलान अवधारणा, लेखांकन अवधि अवधारणा, लागत अवधारणा, राजस्व मान्यता अवधारणा, उपार्जन अवधारणा, चालू व्यवसाय अवधारणा, आदि शामिल हैं।
Table of Contents
लेखांकन अवधारणाएँ (Accounting Concepts)
लेखांकन अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं:
1. व्यवसाय इकाई अवधारणा (Business Entity Concept):
इस अवधारणा के अनुसार व्यवसाय और उसका मालिक एक दूसरे से अलग होते हैं, चाहे वह एकल स्वामित्व वाला व्यवसाय हो या साझेदारी फर्म, हालाँकि कानून के अनुसार, हर व्यवसाय रूप में मालिक और व्यवसाय अलग नहीं होते हैं। इस अवधारणा के कारण, व्यवसाय के मालिक द्वारा किए गए निवेश को व्यवसाय की देनदारी के रूप में माना जाता है और बैलेंस शीट में देनदारियां पक्ष पर दिखाया जाता है।
2. धन माप अवधारणा (Money Measurement Concept):
यह अवधारणा बताता है कि व्यापार में होने वाले सभी वित्तीय लेन-देन को पैसे में मापा जाना चाहिए ताकि लेन-देन का प्रबंधन आसान हो। उदाहरण के लिए, अगर एक पेन है, तो उसे पैसे में मापा जाना चाहिए जैसे 5 रुपये, 10 रुपये आदि। यह अवधारणा यह भी बताता है कि जो चीजें पैसे में नहीं मापी जा सकती हैं उन्हें लेखा पुस्तकों में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए जैसे ईमानदारी, वफादारी आदि।
3. दोहरे पहलू अवधारणा (Dual Aspect Concept):
इस अवधारणा के अनुसार, प्रत्येक लेन-देन को दो भागों में विभाजित करके पुस्तकों में दर्ज किया जाता है, एक भाग डेबिट और दूसरा क्रेडिट होता है। उदाहरण के लिए, नकद खरीद लेनदेन में, खरीद खाता को डेबिट किया जाता है और नकद खाता को क्रेडिट किया जाता है। कौन सा खाता क्रेडिट होगा और कौन सा डेबिट होगा यह डेबिट और क्रेडिट के नियम पर निर्भर करता है। लेखांकन समीकरण इसी अवधारणा पर आधारित है।
A = L + C/E
A = Asset
L = Liability
C/E = Capital / Equity (Owner’s Share)
4. मिलान अवधारणा (Matching Concept):
इस अवधारणा के अनुसार राजस्व का व्यय से मिलान किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि एक वर्ष के लिए राजस्व ली जाती है, तो व्यय भी एक वर्ष के लिए लिया जाना चाहिए। ऐसा करने से वास्तविक लाभ या हानि का पता लगाया जा सकता है। यदि आय अधिक ली जाती है और व्यय कम लिया जाता है, या इसके विपरीत, तो वास्तविक लाभ या हानि का पता नहीं लगाया जा सकेगा।
5. लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept):
यह अवधारणा बताता है कि लेखांकन कार्य को अवधि के आधार पर किया जाना चाहिए या लेखांकन की एक अवधि होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत में लेखांकन अवधि अप्रैल से मार्च तक होती है। ऐसा करने से लेखांकन से संबंधित कार्य विभाजित हो जाता है जिससे लेखांकन कार्य करना आसान हो जाता है।
भारत – अप्रैल से मार्च
ऑस्ट्रेलिया – जुलाई से जून
अमेरिका – अक्टूबर से सितंबर
चीन – जनवरी से दिसंबर
6. लागत अवधारणा (Cost Concept):
इस अवधारणा के अनुसार, व्यवसाय में खरीदी गई संपत्तियों को क्रय मूल्य पर दर्ज किया जाना चाहिए न कि किसी अन्य मूल्य पर। खरीद मूल्य में परिवहन लागत, स्थापना लागत और अन्य संबंधित लागतें भी शामिल होते हैं। इस अवधारणा के अनुसार, बाजार मूल्य या वास्तविक मूल्य पर विचार नहीं किया जाता है और संपत्ति की लागत (मूल्यह्रास/मूल्यवृद्धि को छोड़कर) वही रहती है।
7. राजस्व मान्यता अवधारणा (Revenue Recognition Concept):
इस अवधारणा के अनुसार राजस्व की पहचान तभी की जाएगी जब लेन-देन पूरा हो जाएगा। उदाहरण के लिए, राजस्व की पहचान तब की जाएगी जब उत्पाद का स्वामित्व हस्तांतरित हो जाएगा या बिक्री पूरी हो जाएगी। यदि भुगतान अग्रिम लिया जाता है लेकिन स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता है या बिक्री पूरी नहीं होती है, तो इस स्थिति में राजस्व की पहचान नहीं की जाएगी।
8. उपार्जन अवधारणा (Accrual Concept):
इस अवधारणा के अनुसार, किसी लेन-देन को तब दर्ज किया जाना चाहिए जब वह घटित हो, चाहे वह नकद लेन-देन हो या उधार लेन-देन। उदाहरण के लिए, यदि कोई बिक्री 05.10.2024 को की जाती है और भुगतान 06.10.2024 को प्राप्त होता है, तो इस मामले में बिक्री 05.10.2024 को दर्ज की जाएगी, न कि 06.10.2024 को।
9. चालू व्यवसाय अवधारणा (Going Concern Concept):
यह अवधारणा बताता है कि किसी भी व्यवसाय में लेखांकन इस धारणा के साथ किया जाना चाहिए कि व्यवसाय लंबे समय तक चलता रहेगा जब तक कि इस बात के ठोस सबूत न हों कि व्यवसाय निकट भविष्य में बंद हो जाएगा। यह मानकर उचित लेखांकन का उपयोग किया जा सकता है।
ध्यान दें: ऊपर लेखांकन की सभी अवधारणाओं का उल्लेख नहीं किया गया है।
यह भी पढ़ें:
- लेखांकन (Accounting) क्या है? अर्थ, विशेषताएँ, और बहुत कुछ।
- लेखांकन की प्रक्रिया (Process of Accounting)
- लेखांकन के फायदे और नुकसान (Advantages and Disadvantages of Accounting)
- लेखांकन का उपार्जन आधार (Accrual Basis of Accounting) क्या है? अर्थ, विशेषताएं और बहुत कुछ।
- लेखांकन का नकद आधार (Cash Basis of Accounting) क्या है? अर्थ, विशेषताएं और बहुत कुछ।
- लेखांकन का संकर आधार (Hybrid Basis of Accounting) क्या है? अर्थ, विशेषताएं और बहुत कुछ।
QNA/FAQ
Q1. व्यवसाय इकाई अवधारणा क्या कहती है?
Ans: व्यवसाय इकाई अवधारणा कहती है कि व्यवसाय और उसके मालिक एक दूसरे से अलग हैं।
Q2. डेबिट क्रेडिट के बराबर होता है, कौनसी अवधारणा में कहा गया है।
Ans: दोहरी पहलू अवधारणा
Q3. उपार्जन अवधारणा क्या कहती है?
Ans: उपार्जन अवधारणा कहती है की लेन-देन तब दर्ज किया जाना चाहिए जब वे घटित होते हैं।
Q4. लेखांकन समीकरण किस अवधारणा पर आधारित है?
Ans: दोहरी पहलू अवधारणा
Q5. लेखांकन की अवधारणाओं को लिखिए।
Ans: लेखांकन की अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं:
1. व्यवसाय इकाई अवधारणा (Business Entity Concept)
2. धन माप अवधारणा (Money Measurement Concept)
3. दोहरे पहलू अवधारणा (Dual Aspect Concept)
4. मिलान अवधारणा (Matching Concept)
5. लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept)
6. लागत अवधारणा (Cost Concept)
7. राजस्व मान्यता अवधारणा (Revenue Recognition Concept)
8. उपार्जन अवधारणा (Accrual Concept)
9. चालू व्यवसाय अवधारणा (Going Concern Concept), etc.